[छंद,शब्द,ग्रंथ,संवाद,व्याकरण]
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✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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🌱 सब में एक 🌱
पिंगल से अज्ञान मैं, नहीं जानता छंद।
माँ वीणा की ही कृपा, यद्यपि मैं मतिमंद।।
पिंगल से बँधकर चले,काव्य सुधा सह छंद।
भाव हृदय को छू सकें,सुमधुर कविता कंद।।
शब्द-ब्रह्म से सृष्टि का,हुआ सृजन अभिराम
गीता वेद पुराण का,प्रसरित ज्ञान सुनाम।।
शब्द नाद की घंटिका,बजती अनहद व्योम।
अविरल टपके बिंदु शुचि,रिसता अंतर सोम।
ग्रंथ वही जिसमें सदा,सत का हो आगार।
मानवता शुभ राह को,गह ले बिना विचार।।
हिंसा की शिक्षा जहाँ, ग्रंथ नहीं दुर्भाग।
छूना उसका पाप है,क्यों न झोंक दें आग।।
आपस में संवाद का, है महत्त्व अनमोल।
मुख से वाणी बोलिए, प्रेम - तराजू तोल।।
घर समाज में नेह के, जब होते संवाद।
नहीं किसी जन से उठे,चीत्कार का नाद।।
जब कविता लेखन करे,सीख व्याकरण ज्ञान
विद्वतजन के मध्य में,क्यों होगा अपमान??
पका न हो फल आम का,मिले न रस आनंद
पुष्ट व्याकरण ज्ञान से,आते लय गति छंद।
🌱 एक में सब 🌱
उचित शब्द रस छंद से,
शोभित हों संवाद।
विज्ञ व्याकरण से सजा,
ग्रंथ करे शुभ नाद।।
🪴शुभमस्तु !
०५.०७.२०२२◆११.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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