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✍️शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम् '
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वीभत्स जातिवाद है।
विनाश का निनाद है।।
कबीर एक चाहिए,
सु-चर्मभेद गाद है।
अछूत शूल - सा चुभे,
पर रक्त मय स्वाद है।
आचार पक्षपात के,
कहीं न इत्तिहाद है।
पचे न सत्य आज भी,
सदोष मन - मुराद है।
पढ़े - लिखों में और भी,
अनैक्य का प्रवाद है।
गिरे न पंक भूमि से,
शिखान्त शंखनाद है।
आदमी , आदमी को,
लहूलुहान दाद है।
भेदभाव यहाँ 'शुभम्',
मानवी ईजाद है।
🪴शुभमस्तु !
२४.०७.२०२२◆११.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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