$1$$ $1$$ $1$
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
फूल - सी तुम महकती हो नाज़नीं।
चाँदनी - सी चहकती हो नाज़नीं।।
पाँव में जावक गुलाबी है सजा,
बर्र कटि - सी लहकती हो नाज़नीं।
रान केले का तना चिकना सुघर,
इस जमीं पर उछलती हो नाज़नीं।
पार मैदां के बुलंदी तुंग की,
छलछलाती बहकती हो नाज़नीं।
रस लबों का छलकता है जाम - सा,
मोम - सी तुम हो पिघलती नाज़नीं।
डिम्पले - रुखसार में डूबा हुआ,
दिल से तुम कब हो निकलती नाज़नीं।
आँख हैं या झील की गहराइयाँ,
एक पल में ही फिसलती नाज़नीं।
ये लटें हैं या भ्रमर गुंजारते,
मौन कुंजों में किलकती नाज़नीं।
बादलों के बीच में चमके 'शुभम्',
दंत की छवि - सी दमकती नाज़नीं।
🪴शुभमस्तु !
३१.०७.२०२२◆१.३० पतनम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें