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✍️ व्यंग्यकार ©
🗣️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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परदे के पीछे रहकर भी बड़े - बड़े काम किए जा सकते हैं।किए जा रहे हैं, पहले भी किए जाने का लंबा इतिहास रहा है।इससे कोई ज्यादा अंतर नहीं पड़ता कि चीज कितनी बड़ी अथवा छोटी है।भीमकाय मनुष्य भी एक नन्हीं-सी चुहिया नहीं मार पाता और नन्हीं सी पिपीलिका भी हाथी को चिंघाड़ भरने के लिए पर्याप्त है।बात परदे के पीछे छिपकर कार्य करने की है।
प्रकृति ने जितनी भी चीजों का निर्माण किया है ,उनके सबके ही नकारात्मक औऱ सकारात्मक दोनों ही पहलू हैं।अब मुँह के भीतर दो गालों ,बत्तीस दाँतों और दो मजबूत जबड़ों के बीच बहुमुखी प्रतिभा की धनी, हर समय रस से सनी,प्रेम के लाल रंग से बनी- ठनी,अस्थि हीन ,लचीली ,रबर की तरह कभी छोटी कभी तनी :जीभ की ही बात करते हैं।
ये मत समझिए कि ये बहुत छोटी है ,क्या कर सकेगी। इसकी क्षमता अपार है।ये कभी रस - भरी है , कभी तलवार का प्रहार है।जहाँ ये निवास करती है; वह कभी नरक का द्वार है तो कभी स्वर्ग का सार है। बात केवल उसके प्रयोग की शैली की है। एक लोक प्रचलित दोहा इस प्रकार कहा गया है :
काने तें कानों कहौ,कानों जागौ रूठ।
हौले - हौले पूछिओ,गई तेरी कैसें फूट।।
जीभ को अनेक नामों से संबोधित किया जाता है।जैसे रसना,रसज्ञा, रसिका, रसा ,रसेन्द्रिय, जिह्वा, अरुन्धती, वाचा ,वाणी,गिरा,जबान, आदि। नाम के अनुसार ही उसके अनेक गुण भी हैं।जहाँ रस की बात आती है ,ये स्वाद लेने के लिए विख्यात है।इसे खट्टे, मीठे ,तीखे,नमकीन, कड़ुए, कसैले सभी प्रकार के रसास्वादन में आनन्द आता है।दूसरी ओर ये मीठा या कडुवा बोलकर देश ,समाज या व्यक्ति व्यक्ति में क्या से क्या कर डालती है।महाभारत का युद्ध एक नारी की जीभ के कारण ही अठारह अक्षौहिणी सेना, हाथी ,घुड़सवारों आदि के विनाश का कारण बन गया।इस प्रसंग से भला कौन अनभिज्ञ है ? वही बात आती है कि 'काने तें कानों कहौ' तो बुरा मानना (कानों जायगौ रूठ) तो स्वाभाविक है ,फिर उसका दुष्परिणाम भुगतना भी स्वाभाविक ही है। कौन किस सीमा तक जाकर विनाश को दावत दे सकता है ,ये कौन जानता है भला? यही जीभ जब मीठा बोल बोलती है ,तो मानो फूल झड़ते हैं। अमृत की वर्षा ही होती है। मीठा बोलने से बड़े से बड़े असाध्य काम भी सहज साध्य हो जाते हैं। दूसरी ओर बड़ी बड़ी ठगियाँ भी होती हुई देखी जाती हैं।इसका एक नाम 'जबान' भी है, तो इससे यह भी ध्वनि आती है कि ये सदा जवान ही रहती है। कभी बूढ़ी नहीं होती।
जीभ की अनेक विशेषताओं में यह भी कि इसकी रचना अति साधारण होते हुए भी जटिल है। इसमें अस्थि या हड्डी जैसी वस्तु नाम मात्र को भी नहीं होने के कारण इसका लचीलापन इसका विशेष चमत्कारिक गुण बन जाता है। चूँकि इससे हम सभी बोलने का काम लेते हैं, तो यदि कोई कही हुई बात का परिणाम हमारे विपरीत होता हुआ दिखाई देता है ,तो ये अवसर देखकर पलट भी जाती है। लचीली जो है।इसे झूठ या सच से कोई मतलब नहीं है ,ये आप जानो, आपका मन जाने, आप ही भुगतो। ये तो बस कहकर तुरंत भीतर घुस जाती है।
रहिमन जिह्वा बाबरी,कहि गई सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर रही,जूती खात कपाल।
रस औऱ विष की एकसाथ वाहिका रसना देवी तेरी महिमा अपरंपार है।तेरे ऊपर नियंत्रण एक हाथी पर अंकुश के नियंत्रण की तरह है।जैसे एक बिगड़ा हुआ अनियंत्रित हाथी सदैव विनाश ही करता है,वैसे ही तू भी परिवार,समाज और देश का विनाश ही करती है। बोलने वाली जीभ चाहे आदमी की हो या औरत की, उस पर नियंत्रण का चाबुक चलना ही चाहिए। बिगड़ैल बोल कभी किसी का भला नहीं कर सकते।युग -युग से बिगड़ैल जीभों की यही कहानी चली आ रही है।राजनेताओं की बिगड़ी हुई ज़बान हमेशा से कीचड़ उछालने में पारंगत रही है। चौराहे से चौपालों तक, रेडियो से टीवी चर्चाओं तक, यहाँ तक कि सारे समाज में राजनेताओं की जीभ की दुर्गंध विष के बीज बोती हुई प्रदूषण को बढ़ावा दे रही है। देश के वही कर्णधार यदि देश को आग से बचाना चाहते हैं ,तो क्या यह कभी सम्भव हो सकता है।बड़बोले पन के समर्थक लोग ,अंधे भक्त, चमचे आदि सभी आग में घृत छिड़काव की नहीं,घृत वर्षा के बड़े -बड़े काले बादल लेकर आ रहे हैं, विषैली वाणी की घृत -वर्षा कर रहे हैं। इनके जाने देश जाए भाड़ में , पर उन्हें गलत जीभों का सबल समर्थन करना है ,तो करना है। सच को स्वीकार करने में इनकी नाक जो कटती है।इसलिए झूठ पर मक्खन लगाकर प्रस्तुत किया जाता है ,किया जा रहा है।एक छोटी -सी ज़हरीली जीभ कितने घातक कांड करवाने की उत्तरदायी है, जाना नहीं जा सकता । पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता।इसीलिए तो कहा है :
सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात, न ब्रूयात असत्यम प्रियम।
🪴शुभमस्तु !
०२.०७.२०२२◆३.००पतनम मार्तण्डस्य।
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