शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

सब अपनी -अपनी ही कहते 🚦 [ गीत ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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सब अपनी -अपनी ही कहते।

अपनी   ही   लहरों में बहते।।


नहीं   चाहता   सुनना   कोई।

सबने  अपनी  सरसों  बोई।।

सुर  तालों  में  अपनी  बहते।

सबअपनी-अपनी ही कहते।।


चाल सभी की  बदल रही है।

जो कह दें बस वही सही है।।

मनमानी कर मंजिल  लहते।

सब अपनी-अपनी ही कहते।


जितना स्वार्थ वहीं तकअपना

अपने सुख का देखें सपना।।

कष्ट नहीं  अपने  तन   सहते।

सब अपनी-अपनी ही कहते।


धर्म  पुण्य  के  खेल  निराले।

राजनीति  से   खुलते  ताले।।

तरह तरह के   फूल  महकते।

सब अपनी -अपनी ही कहते।


समता देख नहीं नर  सकता।

छोट-बड़प्पन उसको फबता।

रोते   निर्धन   धनी   चहकते।

सब अपनी -अपनी ही कहते।


🪴शुभमस्तु !


०८.०७.२०२२◆११.४५

आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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