सोमवार, 18 जुलाई 2022

सावनी घन जब गरजते 🌈 [ सजल ]

 

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समांत: इयाँ।

पदांत-अपदान्त।

मात्रा भार:26.

मात्रा पतन:शून्य।

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✍️ शब्दकार ©

🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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बूँद  बरसें   बादलों  से भीगती  हैं  छोरियाँ।

झूलतीं  अमराइयों   में  डाल झूला गोरियाँ।।


सावनी वारिद गरजते नाचते शिखि बाग में,

मुग्ध  होकर  देखती हैं नाच प्यारी मोरियाँ।


रोकती  हैं भीगने से जननियाँ अपनी  सुता,

भेद उनका खोलती हैं भीगती वे    चोलियाँ।


हैं लबालब सरित पोखर छत पनारे जोश में,

गूँजती हैं मेढकों की रात भर प्रिय बोलियाँ।


हरहराते  वेग   से  झरने  बहे जाते   कहाँ,

सिंधु धर के मौन सोया सुन रहा हो लोरियाँ।


कृषक कंधे पर रखे हल खेत अपने जा रहे,

भीग जाएँ वे नहीं सिर ओढ़ ली हैं बोरियाँ।


निर्वसन बालक नहाते दौड़कर बरसात  में,

नाचता है मन 'शुभम्'का तज नहाएँ पौरियाँ।


🪴शुभमस्तु !


१८.०७.२०२२◆६.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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