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✍️ शब्दकार ©
🎸 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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बाँसुरी की फूँक भर,
कविता कहानी,
नाद वीणावादिनी का।
कर रहा हूँ पृष्ठ काले,
बस अकिंचन मैं,
भावना की तुष्टि करने
नीर - सिंचन में,
मैं नहीं सर्जक
किसी भी शब्द-रचना का,
उजाला चाँदनी का।
समझते हैं मीत मुझको,
काव्य - रचनाकार हूँ,
मैं स्वयं ही एक लौंदा
मृत्तिका - अवतार हूँ,
खींचता हूँ कुछ लकीरें
तुष्टि हित अपनी,
पात्र मैं वरदायिनी का।
जब नहीं माँ चाहतीं
कुछ कह नहीं पाता,
स्वप्न में मुझको जगाती
चुपना नहीं आता,
जो मिले निर्देश
मेरी लेखनी कहती,
दास विद्यादायिनी का।
साधना कह लें भले
आराधना मेरी,
लोकहित की साधिनी हो
अभ्यर्थना तेरी,
आजन्म तेरी वर कृपा का
हाथ हो सिर पर,
सुमधुर भाषिणी का।
🪴शुभमस्तु !
१३.०७.२०२२◆५.३० पत्नम मार्तण्डस्य।
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