शुक्रवार, 10 मई 2024

रसना [कुंडलिया]

 222/2024

                


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

रसना   रस -  आगार  है, मधुर  कसैला   तिक्त।

अम्ल लवण कटु हैं सभी,छः रस से अभिसिक्त।।

छ:  रस  से अभिसिक्त, सभी की महिमा  न्यारी।

मधुर  सभी   से   श्रेष्ठ, लगे सबको अति  प्यारी।।

'शुभम्'  बोलिए  बोल, नहीं  कटु करना    रचना।

लगे  हृदय    को   फूल, बनाएँ  सुमधुर    रसना।।


                          -2-

जैसा  इसका    नाम  है,  वैसा  ही हो   काम।

रसना रस  की  धार हो,  रसना  रस का धाम।।

रसना  रस  का  धाम,  हृदयपुर   में बस जाए।

मिले  शांति  विश्राम,सुने  शुभकर फल   पाए।।

'शुभम्'  यहीं  है  नाक,न  बोलें कड़वा   वैसा।

करे    सार्थक   नाम, काम  हो रसना   जैसा।।


                         -3-

जाती   लेकर   स्वर्ग   में,  करे   नरक निर्माण।

रसना  जिसका  नाम  है,  करती  है म्रियमाण।।

करती   है   म्रियमाण, जगत  को यज्ञ   बनाए।

हानि  लाभ  यश  मान,  सभी का बोध  कराए।।

'शुभम्' सुने पिक बोल, हृदय कलिका मुस्काती।

कटु  कागा  के  शब्द, सुनी  कब वाणी  जाती।।


                         -4-

वाणी  रसना   जीभ  ये, शुभकारी  बहु    नाम।

सदा  विराजें  शारदा,  करती  हैं निज    काम।।

करती  हैं  निज  काम, काव्य  की गंगा  बहती।

गहे    लेखनी    हाथ,   शब्द  भावों में    रहती।

'शुभम्'  न   सबको प्राप्त,शारदा  माँ कल्याणी।

रसना  से  रसदार,   सदा  बहती  शुभ   वाणी।।


                         -5-

रसना   पर  माँ  आइए, कवि  की यही  गुहार।

रक्षा      मेरी    कीजिए,   माँ   भारती   उदार।।

माँ  भारती  उदार , जगत  हित निकले  वाणी।

चींटी  गज   नर  ह्वेल, शुभद  करना कल्याणी।

'शुभम्' कर्म फल दान, किया माँ ने कर  रचना।

हो न  लेश  भर हानि, शारदे कवि की   रसना।।


शुभमस्तु !


10.05.2024●9.15आ०मा०

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