शनिवार, 4 मई 2024

अभिमान [कुंडलिया ]

 199/2024

                      


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

करता नर अभिमान  क्यों, आया खाली   हाथ।

यहीं मिला  रहना  यहीं,जाए क्या तृण    साथ??

जाए  क्या  तृण साथ, वृथा क्यों तनता  फिरता।

नेह - डोर को  छोड़, नित्य  विपदा से   घिरता।।

'शुभम्' काठ - सा तान ,घूर पर गर्दभ   चरता।

जग  में  मिले  न मान,अहं क्यों रे नर  करता ??


                          -2-

कारण मनुज-विनाश का,है अतिशय अभिमान।

मरते  बुद्धि  विवेक  सब, रहता अपनी   तान।।

रहता  अपनी   तान,  किसी  की बात  न  माने।

मरे   हृदय   की  तीत,  लगे  फिर तू  पछताने।।

'शुभम्' सँभल  चल  चाल, नम्रता कर  ले धारण।

यों  विनाश  का  मूल, अहं  बन जाता   कारण।।


                         -3-

नेता  नित  अभिमान में,  करें न जन से  बात।

मंत्री  पद  की  ऐंठ  में,  जन  को मारें   लात।।

जन को  मारें  लात, अवधि  जब पद की बीते।

मिले  न   मत  का   दान, लौटते   हैं वे    रीते।।

'शुभम्'  करे   कल्याण,कृपा  करता जो   देता।

विजयश्री   की   माल, पहनता  वह जन नेता।।


                           -4-

रहता  भाव  विनीत जो, तजकर मन अभिमान।

मिले सफलता  हर कहीं,  करे  कृपा का  दान।।

करे  कृपा  का   दान, काम   उसके कब  रुकते?

होता  वही   महान,  विनय   से  दानव   झुकते।।

'शुभम्'  मिले  शुभ  राह,कष्ट तन मन  में  सहता।

करता  है  जग  वाह, नेह  से  जो जन   रहता।।


                          -5-

अपना धन - अभिमान  तू,तज दे रे नर  मूढ़।

जलती  गोरी   देह   भी,नश्वर  जीवन   कूढ़।।

नश्वर  जीवन   कूढ़, अमरता जिसकी   होती।

सूक्ष्म   आत्मा   एक, नहीं  हँसती या   रोती।।

'शुभम्' सुधारें  योनि ,विनय  से तुमको तपना।

त्याग  अहं  के  खेल ,देख  तू  भावी अपना।।


शुभमस्तु !


03.05.2024●10.45आ०मा०

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