गुरुवार, 23 मई 2024

छिपकली - जंग [ व्यंग्य

235/2024 

 

 ] ©व्यंग्यकार 

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

       छिपकलियों की जंग जारी है।जोर- शोर से जारी है। जोश - खरोश के साथ जारी है।जंग के रंग को देख रही दुनिया सारी है।सबके मन में एक जिज्ञासा एक उत्साह तारी है। आप ये भी न समझें कि यह कोई महामारी है।हाँ,इतना अवश्य है कि यह जंग सभी पर भारी है।ये तो बाद में ही पता चलेगा कि इसका परिणाम मीठा है कि खारी है। बस इतना समझ लीजिए कि जंग जारी है।

      कोई छिपकली अकेली जंग नहीं लड़ सकती।इसलिए स्वाभाविक है कि लड़ने वाली छिपकलियाँ एक से अधिक ही होंगीं।निश्चित रूप से ऐसा है भी कि वे एकाधिक ही हैं।अब बात लड़ने के उद्देश्य की आती है कि अंततः कोई लड़ता क्यों है?अपने अस्तित्व की रक्षा भी जंग का एक 'लोकप्रिय' उद्देश्य हो सकता है। इसके अलावा सत्ता हथियाना भी एक विशेष उद्देश्य है।अपने अहंकार की तुष्टि के लिए लहू वृष्टि एक अन्य जंगोद्धेश्य है।अहंकार से अहंकार टकराता है,तो खास तो खास बना रहता है ,आम चुस जाता है। आम तो है ही चुसने चूसे जाने के लिए।

       छिपकलियों का आहार मक्खी, मच्छर , कीट और पतंगे बड़े ही प्रमुदित हैं;छिपकली -जंग में ही उनके भाग्य उदित हैं।जंग जितनी लम्बी चले ,इसी चिंतन में वे खिलखिलाते नित हैं। आप यह भलीभाँति जानते हैं,कि छिपकली कभी नीचे रहना पसंद नहीं करती। उसे हमेशा ऊँचाइयां ही पसंद हैं।ऊंचाइयां भी कोई ऐसी वैसी नहीं।इसीलिए छिपकलियों का छतों से विशेष संबंध है।छतों के ऊपर नहीं, छतों के नीचे की सतह पर ही उनका प्रिय आवास है।ये अलग बात है कि विदेश यात्रा बतौर वे धरती पर भी चरण धर लेती हैं।जरा सी जन- पद आहट पाते ही पुनः छत पर चढ़ लेती हैं। 

     लगता है छिपकली-जंग का उद्देश्य छत की रानी बनने का है।इसीलिए वे एक दूसरी को भूमिसात कर अपने सिर पर ताज पहनना चाहती हैं।जब दो लड़ते -झगड़ते हैं ,तो तीसरा तमाशा देखता है। इस समय भी यही हो रहा है।छिपकलियाँ तमाशा हैं और मक्खी मच्छर तमाशा देख रहे हैं।एक दूसरी की पूँछ पकड़ कर घसीटी -खींची जा रही है।बस उसे नीचा दिखाना है।नीचे गिराना है।अपनी जय जयकार कराना है। कभी कभी ऐसा भी हो जाता है कि दो की लड़ाई में बाजी तीसरा मार ले जाता है।सभी इसी ओर नजर गड़ाए बैठे हैं कि देखें ऊँट किस करवट बैठता है। और वे हैं कि अपने मन की सारी की सारी कीचड़ निकाल कर बाहर किए दे रही हैं।कहीं ऐसा न हो कि आने वाली होली पर सफाई करने के लिए नाले- नालियों में भी कीचड़ न बचे। हाँ, इतना अवश्य है कि सारी छिपकलियाँ निर्मल मन निर्मल तन बगुले जैसे वसन और हम्माम में नगन हो जाएंगी। 

     आइए छिपकली - जंग के ऊँट की ओर नजर गड़ाते हैं कि हमारे बिना जाने वह कोई करवट न ले ले।करवट लेगा तो उठ कर खड़ा भी हो सकता है।यदि बैठा का बैठा ही रह गया तो जंग से लाभ ही क्या हुआ?हालांकि कोई जंग कभी किसी को लाभ देने के लिए नहीं लड़ी जाती। वह तो केवल अपने और मात्र अपने ही लाभ के लिए ,अपने अहं की तुष्टि के लिए, सामने वाले के विनाश के लिए और स्व विकास के लिए लड़ी जाती है।हम तो भैये तमाशबीन हैं, तमाशा देख रहे हैं।बस कोई भी छिपकली जीते, हमें तो तालियाँ ही बजानी है।क्योंकि इन छिपकलियों ने हमें तो बस ताली बजाने वाला ही समझा है।ताली बजाने लायक ही छोड़ा है।क्योंकि इनकी नजर में बाकी सब गधे खच्चर हैं यही एक  'श्वेतवर्ण'  घोड़ा हैं। 

 शुभमस्तु ! 

 23.05.2024●10.00आ०मा० 

 ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...