224/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
समांत : आनी
पदांत : अपदांत
मात्राभार : 24.
मात्रा पतन: शून्य
उतर रहे जल - स्रोत, धरा में कम है पानी।
दिनकर तीव्र उदोत, कठिन है जान बचानी।।
लुएँ चलें चहुँ ओर, जीव जन व्याकुल सारे।
दिखते कहीं न मोर, कहाँ हैं जलधर दानी।।
नेताओं को घाम, नहीं लगता निदाघ में।
ए. सी. कार ललाम, मंच पर भाषण बानी।
भरे देश का पेट , कृषक की दीन दशा है।
सब करते आखेट, जिन्हें सरकार बनानी।।
आश्वासन से भूख , नहीं मिटती जनता की।
गए पेट तन सूख, घरों पर टूटी छानी।।
पाँच वर्ष के बाद, निकल बँगले से आए।
लेना मत का स्वाद,मची है खींचा - तानी।।
पंक उछालें नित्य, परस्पर नेता सारे।
'शुभम्' यही औचित्य , न इनका कोई सानी।।
शुभमस्तु !
12.05.2024●10.00प०मा०
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