गुरुवार, 16 मई 2024

उतर रहे जल-स्रोत [ सजल ]

 224/2024

              

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


समांत    :  आनी

पदांत     : अपदांत

मात्राभार : 24.

मात्रा पतन: शून्य


उतर  रहे  जल - स्रोत, धरा  में  कम है   पानी।

दिनकर  तीव्र  उदोत, कठिन  है जान  बचानी।।


लुएँ  चलें  चहुँ ओर, जीव  जन व्याकुल   सारे।

दिखते  कहीं  न  मोर, कहाँ  हैं जलधर   दानी।।


नेताओं    को   घाम,   नहीं   लगता निदाघ  में।

ए. सी.  कार  ललाम,  मंच   पर भाषण   बानी।


भरे  देश    का  पेट , कृषक  की दीन दशा   है।

सब   करते   आखेट, जिन्हें  सरकार   बनानी।।


आश्वासन  से  भूख , नहीं   मिटती जनता  की।

गए   पेट   तन   सूख,  घरों  पर  टूटी   छानी।।


पाँच   वर्ष   के  बाद, निकल  बँगले से   आए।

लेना  मत   का  स्वाद,मची  है  खींचा - तानी।।


पंक    उछालें   नित्य,  परस्पर   नेता    सारे।

'शुभम्'  यही  औचित्य , न इनका कोई सानी।।


शुभमस्तु !


12.05.2024●10.00प०मा०

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