शनिवार, 25 मई 2024

छिपकली -तंत्र [अतुकांतिका ]

 239/2024

            


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सत्ता के लिए

छिपकलियों में

छिड़ गई है जंग,

पछाड़ने की लगी होड़

दिखलाने लगीं

नए - नए रंग,

शक्ति- प्रदर्शन के

नए -नए ढंग।


'ए मुषली!

तू बड़ी वैसी है,

मुझे नहीं खाने देती

खा जाती 

सब कीट पतंगे,

इसीलिए तो होते हैं

तेरे मेरे दंगे,

चल मक्खी मच्छरों की

आम सभा करवाते हैं,

चुनाव मतदान से हो

यही संविधान बनाते हैं।'


छिपकलियों के नेतृत्व में

एक आम सभा हुई,

लड़ें वे आपस में

यही बात

 सुनिश्चित की गई,

जो जीतेगी वही

छत - रानी बनेगी,

तीन साल तक

सत्ता उसके

 हाथ में रहेगी।


और क्या है 'शुभम्'

चुनाव हो हो रहा है,

उधर मतदाता मच्छर

तान चादर सो रहा है,

'अरे इस वैशाख जेठ की

लू में कौन वोट देने जाए!

जीतकर भी इन्हें 

हमें ही खाना है,

इसलिए निज हित में

इन्हें अपना 

डंडा पुजवाना है।'


और वे  आम चुनाव

लड़ रही हैं,

पोलिंग बूथ खाली पड़े हैं,

पोलिंग पार्टी 

कुर्सियों पर सो रही है।


शुभमस्तु !


23.05.2024●5.45प० मा०

                    ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...