197/2024
[चिरैया,जीव,धरती,दरार,ग्रीष्म]
सब में एक
चपल चिरैया चोंच में, चाँप चने की दाल।
पहुँची अपने नीड़ में ,जहाँ खेलते लाल।।
देह-नीड़ में प्राण की,सूक्ष्म चिरैया एक।
कहाँ छिपी अनजान मैं,करती काज अनेक।।
जीव - जगत जंजाल है,जब से जाना मीत।
कैसे उबरें जीव ये, चाल हुई विपरीत।।
जैसे अपने जीव की, पोषक है हर देह।
समझें सबको भी वही,प्रिय सबको निज गेह।।
भरी धारणा शक्ति से, धरती -धैर्य महान।
सहन करे हर कष्ट को,चला मूक अभियान।।
धरती माता दे रही, नित्य अन्न फल दान।
उसका सदा कृतज्ञ हो,जन्म वहीं अवसान।।
मन में पड़ी दरार ही, बन जाती है गर्त।
पतन करे नर का वही, उधड़े बनकर पर्त।।
भरना शीघ्र दरार को,निपुण मनुज का काम।
शुभता आती नित्य ही,जीवन हो अभिराम।
ग्रीष्म - ताप से तप्त हो, धरती माँगे नीर।
नभ- मंडल में सूर्य का,बढ़ता तेज अधीर।।
गरिमा ग्रीष्म प्रताप की,कौन यहाँ अनजान?
वर्ष सुखद आनंदप्रद, करता भानु महान।।
एक में सब
ग्रीष्म - ताप धरती तपी, पड़ने लगीं दरार।
जीव जगत व्याकुल सभी,विकल चिरैया-क्यार।।
शुभमस्तु !
01.05.2024● 4.45आ०मा०
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शनिवार, 4 मई 2024
गरिमा ग्रीष्म प्रताप की [ दोहा ]
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