215/2024
[पोखर, ताल, झील, बावली, पानी]
सब में एक
गाँव - गाँव पोखर सभी, सूखे तीव्र निदाघ।
जेठ और वैशाख क्या,मास पौष या माघ।।
बिना नीर मछली मरीं,पोखर सब जल हीन।
भेक नहीं टर - टर करें, ढूँढ़े वास नवीन।।
बरसे मेघ अषाढ़ के, भरे खेत वन ताल।
खग तरु जन प्रमुदित सभी,बदल गया है हाल।।
ताल - तलैया बाग - वन, होते सब आबाद।
सघन मेघ वर्षा करें, कल-कल छल-छल नाद।।
अति वर्षा - जल से बने, खेत बाग वन झील।
प्रमुदित हैं तरुवर सभी, हर्षित नहीं करील।।
तव नयनों की झील में, तैर रहा मन मीन।
चैन नहीं पल को कहीं, अतिशय होता दीन।।
मन तेरा है बावली, सीढ़ी बनी हजार।
कैसे पाऊँ थाह मैं,जब तक मिले न प्यार।।
पास न आना बावली,मैं जलधर का खंड।
उड़ता रहता शून्य में, झोंका बन बरबंड।।
पानी-पानी हो गया, खुला चोर का भेद।
चोरी भी पकड़ी गई, बड़ा हुआ जब छेद।।
आँखों का पानी मरा, हया न मन में शेष।
नेतागण इस देश के, धारण करें सुवेष।।
एक में सब
पोखर सरिता बावली,झील ताल आगार।
पानी बिना न जी सकें, चाहें जल का प्यार।।
शुभमस्तु !
08.05.2024●8.00आ०मा०
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