232/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सुख समृद्धि
धन-धान्य बढ़ाती
शुभद अल्पना घर में।
आता पर्व
दिवाली का जब
लेतीं बना रँगोली।
धर्म - कार्य
पूजा व्रत में भी
सजती रही अमोली।।
कमल पुष्प
मोरों से सजती
सुखद अल्पना दर में।
माँ बहनों
ने लिया हाथ में
गृह - सज्जा अधिकार।
अला-बला से
बचा रहे घर
दोषों का प्रतिकार।।
चावल रोली
आटा बालू
से सज भारत भर में।
देवी - देव
ज्यामितिक आकृति
हल्दी या सिंदूर।
स्वस्तिक लक्ष्मी -
चरण सजाते
नया सृजन भरपूर।।
कल इसको
धुल जाना ही है
भाव यही नश्वर में।
शुभमस्तु !
21.05.2024●7.15 आ०मा०
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