गुरुवार, 30 मई 2024

तपें नौतपा खूब [ भुजंगप्रयात ]

 249/2024

           

छंद विधान:

1.मापनी :122  122  122  122

2.चार चरण का वर्णिक छंद।

3.दो -दो चरण समतुकांत।

4.कुल वर्ण संख्या :12.


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


तपें   नौतपा   में   धरा   जीव  सारे।

सभी  चाहते  हैं  नदी   के  किनारे।।

तवा-सी  तपी   भूमि  धूनी  लगी है।

नमी  नीर   की पूर्ण जाती  भगी है।।


नहीं  पाँव  नंगे    पड़ें  यों   धरा में।

कहें   कीर  सारे जला   मैं मरा मैं।।

सभी  ढोर  भैंसें व  गायें  दुखी   हैं।

हमें एक  ही जीव  दीखे   सुखी है।।


सुखी  है  हरा  है  सुफूला  जवासा।

वहीं पास में है अकौवा स- आसा।।

पके आम  मीठे   हमें   हैं    रिझाते।

सभी  प्रौढ़  बूढ़े  युवा  खूब   खाते।।


तपें  चादरें    चारु    शैया    हमारी।

खड़ी  है  रँभाती  सु  गैया  बिचारी।।

चलें  नौतपा  में  स -धूली  तपाती।

हवा आग  की  ये भभूती   उड़ाती।।


तपें   नौतपा   खूब    गंगा  नहाएँ।

जपें  शंभु  का नाम  गीता  सुनाएँ।।

यही जेठ   का मास ज्ञानी  विज्ञानी।

करें कृष्ण का नाम   नामी सुमानी।।


शुभमस्तु !


29.05.2024●12.15प०मा०

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