गुरुवार, 9 मई 2024

गोदी [ गीतिका ]

 216/2024

                    


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


गोदी   का   सुख    किसे   न  भाए।

गोदी    रोते        को      ललचाए।।


बचपन   की    आदत    न   भूलती,

प्यार    मिले   झट    से   चढ़  जाए।


नेता      की      गोदी       में     नेता,

चमचा   तुरत      उछल  बढ़   आए।


दूध    पी    रहे       पत्रकार      बहु,

राजनीति    के      द्वार        सजाए।


कुछ    कंधे   पर     चढ़े    हुए     हैं,

शेष  बचे    सिर     पर   धर    लाए।


कुछ     बेचारे      सोच      रहे     हैं,

कोई       मेरी         गोद      शुभाए।


'शुभम्'  गोद   में    इज्जत    बढ़ती,

गोदीधारी            जान       बचाए।


शुभमस्तु !


08.05.2024●1.15प०मा०

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