240/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
पानी - पानी की पड़ी,परित: प्रबल पुकार।
पानी आँखों का मरा, नर में नहीं शुमार।।
नर में नहीं शुमार, भैंस लोटे पोखर में।
वैसा ही व्यवहार, उलीचे जल भू भर में।।
'शुभम्' न समझे बात,कहें तो मरती नानी।
छोड़ी नर औकात, नहीं मिलता फिर पानी।।
-2-
मानव जीवन के लिए, पानी अति अनिवार्य।
बिना सलिल सब शून्य है,चले न कोई कार्य।।
चले न कोई कार्य, देह में सौ में सत्तर।
पानी ही है धार्य, धरा में वह पिचहत्तर।
'शुभम्' बहाए खूब, बना है नर से दानव।
मेघ गए हैं ऊब, बरसते क्यों हे मानव??
-3-
पानी के पर्याय हैं, जीवन अमृत नीर।
जीव, जंतु, पादप, लता, सबकी जल तकदीर।।
सबकी जल तकदीर,अंबु बिन हर संरचना।
बनता नहीं शरीर, ताप से जलना तचना।।
'शुभम्' पाँच में एक,तत्त्व जल क्रमिक कहानी।
क्षिति पावक नभ वायु,साथ में शीतल पानी।।
-4-
पानी आँखों की हया,नित प्रति जाती सूख।
नर - नारी कब के मरे, मरते पल्लव रूख।।
मरते पल्लव रूख, सूखते सागर सरिता।
क्या पोखर तालाब, शेष रहने जलभरिता।।
'शुभम्' दिखाए आँख,पिता से खींचातानी।
मरा आँख का नीर, पुत्र का सूखा पानी।।
-5-
मोती मानुस चून को,पानी अति अनिवार्य।
पानी बिना न जी सकें, करें न अपना कार्य।।
करें न अपना कार्य,अंकुरित पादप होते।
बने नहीं आहार, कृषक कब दाना बोते??
'शुभम्' जेठ का मास,धरा पानी बिन रोती।
स्वाति बिंदु के बिना,नहीं बनता है मोती।।
शुभमस्तु !
24.05.2024●1.00 प०मा०
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