220/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
आसमान से
एक बार तो
धरती पर भी झाँका होता।
उड़ता रहा
रूस अमरीका
पातालों की खबरें लाया।
आग लगी थी
आसतीन में
नहीं चिरांयध तुझको आया।।
जिंदा मानुष के
जलने का
समाचार क्या अशुभ न बोता?
घर के बालक
भूखे मरते
उधर दूध पीते हैं कुत्ते!
नंग- धणन्ग
देह सिसियातीं
नहीं गात ढँकने को लत्ते।।
सोने के
आखर में अपना
नाम लिखाने को तू रोता!
भाती है
कीचड़ की बदबू
दोनों हाथ सने कीचड़ से।
जी भर
उसे उछाल रहा है
भूक रहे दिन में गीदड़-से।।
'शुभम्' फूटने
लगा देह से
नाले वाला पंकिल सोता।
शुभमस्तु !
09.05.2024●3.15 प०मा०
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