शनिवार, 11 मई 2024

मेरा बचपन :मेरा सेवासन (संस्मरण )

 223/2024 


 

 ©लेखक

 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

 बचपन, बचपन होता है।किंतु बचपन के कार्य और रुचियाँ व्यक्ति के आगामी जीवन का दर्पण होते हैं।बड़े -बड़े चोर,डाकू,अपराधी ,धर्मनिष्ठ, समाजसेवी, नेता आदि सभी प्रकार और प्रवृत्तियों के लोगों में उनके भावी जीवन का बीजारोपण बचपन से ही हो जाता है।मैं यह भी नहीं कहता कि किसी महानता का बीजारोपण मेरे बचपन में हो गया था। हाँ,इतना अवश्य है कि मेरी प्रवृत्ति बचपन से ही परिवार,समाज और अपने आसपास व्याप्त किसी प्रकार की कमी को सही करने और उसका उपाय ढूँढने की ही रही।यही कारण है कि जैसे ही मैंने होश सँभाला और दो अक्षर पढ़ना सीखा ,वैसे ही मेरी लेखनी अपना काम करने लगी। 

 कविताएँ लिखना तो मुझे उसी समय से आ गया था ,जब मेरी उम्र मात्र ग्यारह साल की थी।उस समय मैं कक्षा चार का छात्र था।उस जमाने में बच्चे आजकल की तरह ढाई तीन साल के पढ़ने नहीं जाते थे। मैं जब पढ़ने बैठा उस समय मेरी उम्र सात वर्ष की रही होगी।इसलिए चौथी कक्षा में आते -आते ग्यारह साल का होना ही था।लेखनी अपनी यात्रा पर चल पड़ी थी। 

 मेरा गाँव आगरा से उत्तर दिशा में टेढ़ी बगिया से जलेसर मार्ग पर तीन किलोमीटर और रोड से गाँव 1500 मीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में स्थित है। उस समय टेढ़ी बगिया से जलेसर को जाने वाली सड़क कच्ची हुआ करती थी।मेरा विचार यह था कि यह सड़क पक्की होनी चाहिए।1975 में मेरे द्वारा एम०ए०करने तक वह कच्ची ही रही।उससे पहले उस समय की बात है जब उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्य मन्त्री श्री हेमवती नंदन बहुगुणा हुआ करते थे।मुझे यह अच्छी तरह याद है कि उस सड़क को पक्का कराने के लिए एक प्रतिवेदन मेरे द्वारा उन्हें रजिस्टर्ड डाक से भेजा था। उस समय मैं किसी कक्षा का विद्यार्थी ही था। कार्बन लगाकर प्रतिवेदन तीन प्रतियों में लिखा गया और गाँव के लगभग सौ लोगों के हस्ताक्षर कराकर एक प्रति भेज दी।इसके साथ ही आगरा शहर ,यमुना नदी ,आगरा से जलेसर जाने वाली सड़क का नक्शा बनाकर भी भेजा। बाद में वह सड़क पक्की कर दी गई। मैं नहीं जानता कि यह सब कैसे हुआ। 

  1996 - 97 में मैं राजकीय महाविद्यालय आँवला (बरेली) में हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफ़ेसर था।तभी आगरा के समीप आँवलखेड़ा में नव स्थापित राजकीय महिला महाविद्यालय खुलने की सूचना मिली।तभी उत्तर प्रदेश सरकार में माननीय मंत्री श्री धर्मपाल सिंह जी के सत्प्रयासों से मैंने अपना स्थानांतरण इसी कालेज में करा लिया। वहाँ मुझे राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी का प्रभार भी प्राप्त हुआ। और उसका प्रथम दस दिवसीय विशेष शिविर अपने गाँव में ही लगा दिया तथा अपने ही निवास पर सभी शिविरार्थिनीयों के ठहरने, खाना बनाने ,खिलाने आदि की सभी व्यवस्थाएँ कर दी गईं। 

 पचास छात्राएं नित्य प्रति गाँव में आतीं और फावड़े तसले लेकर गाँव से सम्बद्ध पक्के मार्ग तक दगरे को कच्ची सड़क में बदलने का कार्य करतीं।सड़क बनाई गई और सड़क पर सड़क से गाँव की दूरी अनुमान से ही 1200 मीटर लिख दी गई।विशेष शिविर के समापन समारोह का संपादन तत्कालीन क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी आगरा डॉ.रामानंद प्रसाद जी के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ। 

 उसी अवधि में कच्ची सड़क बन जाने के बाद मेरे मन में यह विचार कुलबुलाने लगा कि यह कच्ची सड़क यदि पक्की हो जाती तो कितना अच्छा होता। बस मैंने अपने प्रयास शुरू कर दिए और एक प्रार्थना पत्र बनाकर गांव की बी०डी०सी० के माध्यम से माननीय ग्राम्य विकास मंत्री श्री धर्मपाल सिंह जी को भेज दिया। कुछ ही महीने के बात थी कि पक्की सड़क निर्माण के लिए पी०डब्लू०डी० विभाग के पास आवश्यक धनराशि भेज दी गई और शीघ्र ही सड़क निर्माण का कार्य भी प्रारम्भ हो गया और मेरे द्वारा लगाए गए सूचना बोर्ड के अनुसार केवल 1200 मीटर सड़क का ही निर्माण किया गया। गांव से 300 मीटर पहले ही सड़क बनाना बन्द कर दिया गया। पूछने पर बताया गया कि 1200 मीटर के लिए ही अनुदान आया था। मैंने पुनः माननीय मंत्री जी को लिखा पढ़ी की तो गाँव के बाहर जंगल तक दो किलोमीटर तक पक्की सड़क बना दी गई ।इस प्रकार समाज और देश हित की भावना ने गाँव की उस सड़क को सम्बद्ध मार्ग से जोड़कर पूर्णता पाई।

  मेरे जीवन की यही कुछ छोटी - मोटी झलकियाँ हैं ,जो बड़े होने पर भी जीवन में एक सकारात्मक सोच बनकर देश व जनहित के लिए समर्पित रहीं। मुझ अकिंचन में आज भी वही जज्बा,जुनून और जोश कायम है,जिससे निस्वार्थ भाव से पूर्ण करते हुए जीना ही जीवन का लक्ष्य बन चुका है।काव्य और साहित्य लेखन भी मेरी इसी भावना को समर्पित कार्य हैं,जिसे आजीवन करने की यथाशक्य इच्छा पालकर अपने चिंतन को अग्रसर कर रहा हूँ। 

 भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः। 

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःखभाक भवेत।।

 11.05.2024●11.45आ०मा० 

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