सोमवार, 6 मई 2024

नारी बनाम गलती [कुंडलिया]

 209/2024

             


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

माने अपनी लेश भर , गलती   कभी न   एक।

देखे  बिना  न  आँख  से,  नारी   वह प्रत्येक।।

नारी  वह    प्रत्येक, ईश   की  अद्भुत   रचना।

आठ  पहर  का  साथ,पुरुष  यह कैसे बचना।।

'शुभम्'  सत्य  यह बात,सदा वह अपनी ताने।

देते    रहो    प्रमाण, आपकी   एक  न    माने।।


                         -2-

नारी   से  कहना   नहीं, गलती  करो अनेक।

दे दें   भले  प्रमाण   भी,   एक  तुम्हारी टेक।।

एक  तुम्हारी  टेक, कभी   मैं  गलत न होती।

लगा  रहे  आरोप , झूठ   कह-कह  कर रोती।।

'शुभम्' न  डालो  हाथ,साँप का बिल है भारी।

करो  मौन  स्वीकार, गलत कब होती   नारी।।


                        -3-

पहले - पहले  पुरुष की,रचित हुई है देह।

बाद विधाता ने  करी, नारी सृष्टि स्व गेह।

नारी  सृष्टि  स्व गेह,भूल क्या ऐसी उनसे।

हुई  सृजन में  दीर्घ, भरी  नारी ठनगन से।।

'शुभम्'  सोचते  ईश,मार  नहले पर दहले।

रच दी  नारी शुभ्र, नहीं  पर  नर  से पहले।।


                         -4-

नारी   है  संसार   में,  प्रभु  की महती  भूल।

कहते   हैं   परमात्मा,   बने पुरुष-अनुकूल।।

बने पुरुष-अनुकूल,झूठ निकला वह  वादा।

कर्म  करे   प्रतिकूल,उलट  ही हुआ इरादा।।

'शुभम्' करें क्या लोग,पुरुष पर पड़ती भारी।

पाल   लिया   क्या  रोग,नहीं फुलवारी नारी।।


                         -5-

करते  हैं  उपहास  क्यों, वृद्ध विधाता  आज।

नहले  पर  दहला  लगा, हटा दिया नर-ताज।।

हटा  दिया  नर -ताज, गलतियों की ये क्यारी।

माने  एक  न  बात,खिल रही घर-घर   नारी।।

'शुभम्' जननि का रूप, कभी पत्नी ला धरते।

खोद  घरों  में   कूप, विधाता  नाटक करते।।


शुभमस्तु !

06.05.2024●7.30आ०मा०

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