242/2024
©व्यंग्यकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
आज के युग में आदमी से अधिक आदमी के फोटो का महत्त्व है।क्योंकि आदमी का क्या,वह तो कभी भी टाटा बाय बाय करते हुए निकल लेता है, अमर है तो उसका फोटो ही है,और कुछ भी नहीं।फोटो की अमरता को दृष्टिगत करते हुए आदमी काम से अधिक फोटो को वरीयता प्रदान करता है।काम चाहे हो या न हो उसका फोटो खिंच जाना चाहिए।इस फोटो फुटौवल के हजारों उदाहरण दिए जा सकते हैं।
जीवन के विशद आकाश की यात्रा पर निकलो तो फोटो फुटौवल के नशा में झूमते हुए हजारों लोग मिल जाते हैं।पेड़ एक लगता है फोटो पच्चीस के खींचे जाते हैं। वह भी एक दो नहीं पचासों फोटो अलग- अलग अदाओं में अलग धजाओं में खिंचते हैं। भला हो मोबाइल कैमरा बनाने वाले का यह सुविधा मुट्ठी-मुट्ठी को प्रदान कर दी।वही फोटो फिर अखबार ,टीवी, मुखपोथी और सोशल मीडिया पर धमाल मचाते हैं।शादी ब्याह की रस्में हों या न हों दूल्हा,दुल्हन, फूफा,जीजा,समधी,समधिन,यार दोस्त सब फोटो फुटौवल में मस्त हैं।
फोटो का बड़ा भाई वीडियो क्यों पीछे रहने लगा भला?बरात चार कदम आगे बढ़ती है तो फोटुओं की बरात और आगे निकल जाती है।घोड़ी के साथ नाचने का मौका बार -बार हाथ नहीं आने वाला! इसलिए इसे नहीं छोड़ा जाना चाहिए।फोटो फुटौवल के चक्कर में घनचक्कर बना हुआ आदमी यह भूल जाता है कि विवाह की रस्मों से ज्यादा खास है फोटो फुटौवल।इसलिए सूर्यास्त को पड़ने वाली भाँवरें अगले दिन सुबह या दोपहर तक पड़ पाती हैं। पता ही नहीं लगता कि विवाह के लिए फोटो खींचने हैं या फोटो फुटौवल के लिए विवाह करना पड़ रहा है। विवाह गौड़ हो जाता है।फोटो अपनी टाँगें पहले अड़ा देता है।जैसे सब कोई फोटो फुटौवल के दीवाने हो गए हैं।कभी -कभी तो फोटो फुटौवल में हाड़ फुटौवल और खोपड़ी फुटौवल बाजी मार ले जाती है।
आग लगी हुई है।आग बुझाने वाले कम वीडियो और फोटो बनाने वाले ज्यादा मिल जाएँगे।आग बुझाने की चिंता और प्रयास भला कितने भाषाणवीरों का रहता है? न के बराबर। जब तक फायर ब्रगेड की गाड़ी आती है, तब तक सब स्वाहा हो चुकता है।
विचार किया जाए तो आदमी से अधिक बड़ी उम्र फोटो की ही होती है। क्योंकि आदमी तो निकल लेता है , फोटो स्मृति चिह्न बना हुआ अमर हो जाता है।तभी तो पिछली कई -कई पीढ़ियों के फोटो आज की पीढियां देख पा रही हैं।ये हमारे पर बाबा हैं,ये उनके भी बाबा हैं ,ये दादी हैं ,ये परदादी हैं वगैरह वगैरह।
वर्तमान फोटो फुटौवल का एक अहम पहलू ये भी है कि इसके दीवाने अपना जीवन इसी के लिए दाँव पर लगा बैठते हैं। वे साहसिक दृश्य (एडवेंचर ) के लिए नदी के बीच धार में,फिसलते हुए कगार में, रेल की पटरी पर, बहु मंजिला भवनों की चोटी पर, साँप बिच्छुओं से खेलते हुए फोटो फुटौवल से पीछे नहीं हटते।फोटो पहले ,जीवन बाद में। इसीलिए तो डूबा है आदमी फोटो के स्वाद में।आदमी से ज्यादा बसता है वह उसकी ही याद में।आदमी विदा ,स्मृतियों पर फिदा।
इससे एक बात और निकल कर आती है कि उसे वर्तमान से अधिक इतिहास से प्रेम अधिक है।वह अतीत जीवी है।वर्तमान से घृणा और चिह्नों से प्यार।क्या ही विचित्र है ये आदमी का खुमार।वह छायाप्रेमी है। अतीत जीवी है।इसीलिए नए फैशन के लोग जिंदा माँ बाप के वर्तमान का सम्मान न करके उनके फोटुओं पर माला पहनाते हैं, कौवे और चीलों को भोज कराते हैं।यह भी तो फोटो प्रेम ही है।आदमी के अधः पतन की पराकाष्ठा।फोटो फुटौवल का एक और रूप।बन गया आधुनिक आदमी फोटो - भूप। वर्तमान से अधिक भूतप्रेम, पीछे रह गए सब कुशल - क्षेम।शेम! शेम!! कहाँ से कहाँ जा पहुँचा आदमी! आदमी को आदमी होना था लाज़मी।जीवित देह से इम्पोर्टेन्ट हो गई आदमी की ममी।रही ही कहाँ हैं उन आँखों में नमी ?लगता है ये आदमी नहीं है ,ये है आदमी की डमी।ये अलग बात है कि इसे उसकी अति सभ्यता कहें अथवा बड़ी - सी कमी।
शुभमस्तु !
26.05.2024●7.45आ०मा०
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