शनिवार, 25 मई 2024

गृहगोधा की जंग [ दोहा ]

 236/2024

             

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


छिपकलियाँ  पाली  नहीं,जातीं  छत में  मित्र।

पता न कब आतीं सभी,दिखला चटुल चरित्र।।

नर -नारी  घर  में बसें,छिपकलियाँ भी  साथ।

स्वतः कहाँ  से आ गईं,कभी न आतीं  हाथ।।


छिपकलियाँ लड़तीं सभी,छत पर शासन  हेतु।

फहराना  वे    चाहतीं, अपना  काला   केतु।।

लड़-भिड़   पीछा कर  रहीं,दौड़ लगाएँ  नित्य।

छिपकलियाँ छत में बसीं,बतलातीं औचित्य।।


छत  की  रानी  मैं  बनूँ, उनका यही विवाद।

छिपकलियाँ  दुम  खीँचतीं,मच्छर देते  दाद।।

जंग  छिड़ी  घनघोर  ये,छिपकलियों की तेज।

कीड़े   और   पतंग  में ,खबर सनसनीखेज।।


कौन  गिरा  पाए  किसे,बचा स्वयं की लाज।

छिपकलियाँ  निर्भय  लड़ें,देखो ऊपर  आज।।

झींगुर    मच्छर   के लिए,गरम मसाला  खूब।

जंग   छिपकली से मिला,कौन सके अब ऊब।।


सबके  बड़े  कयास  हैं,करवट हो क्या   ऊँट?

कौन  छिपकली  जीतती, निकले बगबग सूट।।

तू   मुषली   गन्दी  बुरी, मैं  ही  निर्मल   साफ।

आ  जाने  दे  जीतकर , तुझे न करना   माफ।।


वाणी करें भविष्य  की,  झींगुर दास अभीत।

छिपकलियों की जंग में,नीति सभी विपरीत।।

गृहगोधा  की  जंग में,  छत की क्षति अपार।

राजनीति  के  युद्ध का,  मत  समझें आधार।।



शुभमस्तु!


23.05.2024●11.45आ०मा०

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