गुरुवार, 9 मई 2024

हुक्का [ गीतिका ]

 217/2024

                  


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


चिलम  गई  अब   रहा  न  हुक्का।

गुड़ -  गुड़ कहीं न करता   हुक्का।।


चार   लोग    मिल   बैठें    जमकर,

सबको      बाँध   बैठता      हुक्का।


सिखलाता   था      मेल     एकता,

सम   समाज  की  समता   हुक्का।


किया  बंद    यदि    हुक्का -  पानी,

बहिष्कार    का     नपता    हुक्का।


बच्चों  का   यह   खेल   न   समझें,

बड़े   जनों    की    दृढ़ता    हुक्का।


दाढ़ी    मूँछ       सफेदी        लाएँ,

पक्का     मर्द      जताता    हुक्का।


'शुभम्'    उमड़ता   पानी     पीला,

अनुभव   खान    बताता   हुक्का।।


शुभमस्तु !


08.05.2024●2.15प०मा०

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