217/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
चिलम गई अब रहा न हुक्का।
गुड़ - गुड़ कहीं न करता हुक्का।।
चार लोग मिल बैठें जमकर,
सबको बाँध बैठता हुक्का।
सिखलाता था मेल एकता,
सम समाज की समता हुक्का।
किया बंद यदि हुक्का - पानी,
बहिष्कार का नपता हुक्का।
बच्चों का यह खेल न समझें,
बड़े जनों की दृढ़ता हुक्का।
दाढ़ी मूँछ सफेदी लाएँ,
पक्का मर्द जताता हुक्का।
'शुभम्' उमड़ता पानी पीला,
अनुभव खान बताता हुक्का।।
शुभमस्तु !
08.05.2024●2.15प०मा०
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