246/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
ठूँठ बिलखते
करते क्रंदन
रही न तरुवर छाँव।
अपने पाँव
कुल्हाड़ी मारे
मानव निर्दय जीव।
जिनसे लाभ
उठाए निशि दिन
बना उन्हीं से क्लीव।।
पत्थर मार
फलों को तोड़े
लगा रहा नित दाँव।
धरती रोए
बूँद -बूँद को
निर्मेघी आकाश।
करें तपस्या
जो आजीवन
उन पेड़ों की लाश।।
पौधारोपण
नहीं हो रहा
लू में तपते पाँव।
जान रहा है
सुख वृक्षों का
फिर भी बन अनजान।
आरे चलते
तरु पर उसके
दिखा व्यर्थ की शान।।
कोकिल वाणी
न दे सुनाई
या कौवे की काँव।
शुभमस्तु !
28.05.2024●8.30आ०मा०
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