शनिवार, 25 मई 2024

मियाँ मिट्ठू बनें [ व्यंग्य ]

 241/2024

               


©व्यंग्यकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मियाँ मिट्ठुओं का जमाना है।यदि आपको अपने को ऊपर उठाना है,तो ये आपका जमाना है।आप जमेंगे ही नहीं,नाकों नाक तक तर माल में गड़ जाएंगे। आपका मुकाबला अच्छे -अच्छे क्या बड़े-बड़े अच्छे नहीं कर पाएँगे।बस आप मियाँ मिट्ठू बने रहिए।कोई कुछ भी कहे आप अपनी पर डटे रहिए। भले ही आपकी बात सोलह आने झूठ हो।भले ही आपकी सम्पत्ति का स्रोत खसोट - लूट हो।पर प्रश्रय देते रहिए आपसी फूट को।बस चमकाए रखिए अपने टाई- सूट को।


जब तक आप मियाँ मिट्ठू नहीं बनेंगे,भला आपको कौन जानेगा।आपकी महिमा को कौन मानेगा।इसलिए कुछ उखाड़-पछाड़, तोड़-फोड़ भी जरूरी है।तभी तो आपकी इच्छा हो सके पूरी है।वैसे आप जमाने से दूरी ही बनाए रखना। तभी तो आपको उसका मधुर लवण स्वाद पड़ेगा चखना।हो सकेगा तभी आपका पूरा हर सपना।अब अपने इतनी दूर बसे हुए सूरज को ही देख लीजिए।वह भी मियाँ मिट्ठू बनने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता।वैशाख जेठ में दिन में दिखा देता है तारे पर दुनिया से मुख नहीं मोड़ता।शिशिर के कड़े शीत में आगमन की प्रतीक्षा करवाता है ; तो सावन भादों में मेघों में दुबक जाता है।सूरज भले ही  वाणी से मौन है ,किंतु मियाँ मिट्ठू उससे बड़ा कौन है?


    बड़ी - बड़ी कंपनियों वाले अपने घटिया माल का बढ़िया विज्ञापन करवाते हैं।जो खूबियाँ उनके माल में नहीं होतीं ,उनको हीरो- हीरोइनों को  मोटा  पैसा दे देकर झूठ कहलवाते हैं।उपभोक्ता भी हैं कैसे मूर्ख और नादान कि उनकी बातों में आ जाते हैं।यदि क्रीम लगाने से चमड़ी गोरी हो गई होती तो देश की सारी भैंसें गोरी चिट्टी गाय बन जातीं।पर आदमी है कि झूठ का दीवाना है। मैंने पहले ही कहा कि ये मिया मिट्ठुओं का जमाना है।


आप मेरी बात मानें। नेताओं की तरह दूसरों पर भरपूर कीचड़ उछालें।चलाते रहें अपनी मियाँ मिट्ठूपन की चालें।इस काम के लिए हो सके तो कुछ गुर्गे और चमचे भी पालें।फिर देखिए आपके कारनामे नहीं रहेंगे काले।अरे कुछ झूठ बोल कर ,झूठ में सच घोलकर, नाप तोलकर मियाँ मिट्ठू बने रहिए। आज के नेताओं से कुछ तो प्रेरणा लीजिए, कुछ सीखिए,मियाँ मिट्ठू अवश्य बने रहिए।


आप कहेंगे कि मियाँ मिट्ठू बनने के लिए हम क्या करें? बस झूठ की नाव में बैठ जाइए और अपनी नैया पार लगाइए।आपने देश और समाज के लिए क्या- क्या किया! इसी के गुण गाते रहिए ,दूसरों को नीचा दिखाइए और अपनी गुण- गाथा गाते रहिए।फिर क्या है नदी के बहाव में भी उल्टे बहिए।कोई क्या जाने कि आप कितने समर्पित हैं,समाज और देश हितार्थ संकल्पित हैं,देश की पीड़ा से आप कितने व्यथित हैं। यही सब कहिए,भले कुछ न किया हो। कुछ करिए भी मत। क्योंकि जिसे करना है ,स्वयं कर लेगा।आपको तो अपने प्रताप का झंडा ऊँचा उठाए रखना है।अखबार की सुर्खियां, सोशल मीडिया, मुखपोथी, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप सब पर छाए रहें।अपने मियाँ  मिठत्व का स्वाद बढ़ाते रहें। ये देश ऐसे मियाँ मिट्ठुओं को ही पसंद करता है। ऐसों पर मरता ही नहीं अपनी जान भी छिड़कता है।


शुभमस्तु !


25.05.2024●7.45आ०मा०

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