शनिवार, 4 मई 2024

भक्त नहीं कुछ बोल रहे हैं! [नवगीत ]

 201/2024

    


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


भक्तालय में

हक्के-बक्के

भक्त नहीं कुछ बोल रहे हैं।


अंधभक्ति कुछ

काम न आई

गरुण- मीडिया बेबस भारी।

यहाँ - वहाँ

अँधियारा छाया

कोरोना  की  ज्यों बीमारी।।


एक - एक कर

कतर रहे पर

रुख बयार का तोल रहे हैं।


आँधी नहीं 

सुनामी कोई

हवा बंद  है भीतर बाहर।

घुसे माँद में

जो दहाड़ते

चीते हिंसक या थे नाहर।।


भक्तों की ख़ातिर

वचनामृत

नहीं रसामृत घोल रहे हैं।


भेड़ों की 

अपनी क्या इच्छा

वे तो केवल हैं अनुगामी।

उनकी चाह

घास मिल जाए

'जो आदेश' भरें वे हामी।।


'शुभम्' हवाओं

के रुख बदले

मन उनके अब डोल रहे हैं।


शुभमस्तु !


03.05.2024●4.00प०मा०

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