गुरुवार, 9 मई 2024

टूटकर जुड़ने की [ अतुकांतिका ]

 221/2024

         

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


टूटकर

जुड़ने की गाँठें

पूर्ववत होतीं नहीं।


दूरियाँ 

बनती दिलों में

जब विषमता का जहर,

आँच - सा जलता

यकायक

रात - दिन आठों प्रहर।


आदमी ही 

आदमी का

शत्रु बनकर आ खड़ा।


स्वार्थ आड़े

आ रहे हैं

स्वार्थ की सत्ता सदा,

हो रहे हैं

गैर अपने

हाथ में खंजर गदा।


'शुभम्' शुभता

जानता कब

पंक में सिर तक गड़ा।


शुभमस्तु !


09.05.2024●3.45 प०मा०

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