सोमवार, 6 मई 2024

चश्मा [बाल गीतिका]

 212/2024

                

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


नाक    कान    पर  अटका  चश्मा।

हमको    राह     दिखाता   चश्मा।।


तेज    धूप    की   चौंध    न भाती,

आँखों    को     भरमाता     चश्मा।


दृष्टि   अगर     कमजोर      हमारी,

साफ -  साफ  दिखलाता    चश्मा।


यदि हो  आँख  खराब   किसी  की,

शगुन  न    बुरा    कराता    चश्मा।


मुखड़े    का    शृंगार     एक   यह,

चारों    चाँद      लगाता      चश्मा।


सूरदास      भी     सजते    इससे,

दर्शक    को    जतलाता    चश्मा।


'शुभम्'  शौक का  पूरक   कृत्रिम,

मित्रो        रंग - बिरंगा       चश्मा।


शुभमस्तु !

06.05.2024●12.30प०मा०

                   ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...