247/2024
छंद-विधान:
1.24 वर्ण का वर्णिक छंद।
2.आठ सगण सलगा =(II$ ×8).
3.12,12 वर्ण पर यति।प्रत्येक चरण में 24 वर्ण।
4.अंत में समतुकांत अन्त्यानुप्रास।
© शब्दकार
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
नभ से बरसे रवि तेज महा,
धरती जल अंबर नित्य तपे।
अकुलाइ रहे जन जीव सभी,
कब शीतल ब्यारि बहे भुव पे।।
कत रोष भरे सतराइ खड़े,
जल जीवहु प्राण बचाइ जपे।
तन स्वेद भरे महकाइ रहे,
निज नाथ बिना तिरिया कलपे।।
-2-
वन बागनु में पथ गाँवनु में,
नित पेड़ कटें जलहीन धरा।
नभ में उमड़ें न सु मेघ घने,
सब चीखत कीर पखेरु मरा।।
पय सूख गयौ थन ढोरनु से,
तिय कौ मुरझाइ गयौ अँचरा।
नर नारि किसान दुखी मन में,
घर में घबराइ फिरे कबरा।।
-3-
खरबूज सुगंध लुभाइ रही,
तरबूज तरावट आइ गई।
लँगड़ा फ़जली महके अमुवा,
नव नीलम जामुन छाइ नई।।
निबुआ रस कौ सुख अम्ल रिसे,
बहु स्वाद भरे फल डाल कई।
जब छाछ सुशीतल स्वाद भरे,
मन में तन में सुख राशि भई।।
-4-
तचि भूमि भई रज आग मई,
परसे पद अंग जलाइ रही।
चिनगारि उड़े तन कोमल पे,
जल लूक सुदेह सुभाइ नहीं।।
तन कौ जल सूखि उड़े नभ में,
सब रूखनु लूअ चुभाइ बही।
मछली सर में घबराइ घिरी,
बस छाछ रुचे अरु खाइ दही।।
-5-
इत प्यास बढ़ी उत ताप चढ़ौ,
बड़रे दिन की छुटकी रतियाँ।
इत ब्याह भयौ नव ब्याहुली से,
कित जाय करें मन की बतियाँ।।
तन से तन कौ मन से मन कौ,
परिचायक जातक की गतियाँ।
निज द्वार रखौ शुभ चिह्न 'शुभं',
शुचि पीत सजें दो- दो सतियाँ।।
शुभमस्तु !
28.05.2024●2.00प०मा०
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