207/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सत्तासन की
जननी जनता
उसको आँख दिखाना मत।
तू याचक है
दाता है वह
फैलाए भी जोड़े हाथ।
आजीवन तू
उऋण न होगा
सदा झुकाना उसको माथ।।
तू संतति
वह पूजनीय है
तुझे पालना ही है सत।
भय धमकी
आतंक दिखाकर
कौन यहाँ पर टिक पाया।
शोषण करता
तू उसका ही
जिसकी तुझे मिली छाया।।
आजीवन
आभारी होकर
कर्म पंथ पर हो जा रत।
अहंकार से
मिट जाते हैं
राजपाट वैभव सारे।
न्याय धर्म का
करे अनुसरण
बनते हैं जन-जन प्यारे।।
करनी कथनी
एक जहाँ हो
जनगण की होती सदगत।
शुभमस्तु !
05.05.2024●10.15आ०मा०
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