208/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
पहले वाली
बात नहीं है,
पाँच साल पहले जैसी।
बहने लगीं
हवाएँ उलटी
शीत युद्ध अनिवार चले।
मन में चलीं
कटारी बरछी
पड़ती बीच दरार छले।।
रुख बतलाते
वर्षा होगी
नहीं प्रबल वैसी-वैसी।
एक दूसरे को
दिखलाना
चाह रहे दोनों नीचे।
सत्तासन की
शतरंजों में
गोट मुट्ठियों में भींचे।।
अच्छे ये
आसार नहीं हैं
होनी है ऐसी -तैसी।
समय एक -सा
कभी न रहता
प्यादा फ़र्जी बन जाता।
चालें अपनी
चले न सीधी
चलते - चलते तन जाता।।
गर्भ समय के
जो पलता है
कर देता हालत ऐसी।
शुभमस्तु !
05.05.2024●2.30प०मा०
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