228/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
कठफोड़वा
मत कहिए,
कहिए अब बस
कनफोड़वा,
जो मात्र कानों को
फोड़ता है।
नक्कारखाने में
भला आवाज
तूती की
सुनेगा भी कौन,
चिल्लाते रहो,
चीखते रहो।
ज्यादा सड़े हुए
आम की ढेरी,
उसी में से
चुनना है
सबसे कम
सड़ा हुआ आम,
यही है तुम्हारा काम।
होने लगी है शाम
सूरज अस्ताचल को है,
आवाजें कान फोड़ रही हैं
आम सड़ रहे हैं
किसी एक सड़े हुए को
'खास' बनाना है।
सत्य मौन है,
झूठ ठठाकर
हँस रहा है,
किसे पड़ी है
देश हित की
कुर्सी लपक दौड़
अपने उत्कर्ष पर है।
शुभमस्तु!
16.05.2024●6.15प०मा०
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