गुरुवार, 23 मई 2024

छिपकलियों की जंग [ गीत ]

 234/2024

         

©शब्दकार

डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'


छत   तल दौड़ी छिपकलियों की जंग  तेज है।

कब धरती  पर  आ टपकें सनसनीखेज  है।।


मैं    ही   तो छत  की  रानी हूँ यह विवाद  है।

गिरना  होगा   तुझको   नीचे  मूक नाद  है।।

ऊँचा   मेरा  सिंहासन  शुभ सजी सेज   है।

छत तल दौड़ी छिपकलियों की जंग तेज  है।।


पूँछ   पकड़कर  खींच   रही  है   जो मोटी  है।

बेचारी   बन   चीख    रही   है  जो छोटी   है।।

खतरा  है  दोनों   गिर   जाएँ   सड़ी लेज   है।

छत  तल दौड़ी  छिपकलियों की जंग  तेज है।।


दोनों   के   झगड़े   को  तीजी  देख  रही    है।

दोनों    ही     गिरने    वाली   अनुमान यही है।।

मौके   की   उसको   तलाश   निश्चय सहेज है।

छत  तल  दौड़ी छिपकलियों   की जंग तेज  है।।


झींगुर  मच्छर    नाच   रहे  क्या  होने    वाला।

छिपकलियों   की   महाजंग  है गरम मसाला।।

लड़ने      वाले   बने  तमाशा   बढ़ा  क्रेज   है।

छत   तल दौड़ी  छिपकलियों की जंग तेज  है।।


शुभमस्तु !


23.05.2024●5.15आ०मा०

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