शनिवार, 25 मई 2024

देखो छत की ओर [ गीतिका ]

 237/2024

            

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


देखो    छत  की  ओर, छिपकलियों की   जंग।

ज्यों  गिरगिट   चितचोर ,  नित्य बदलता   रंग।।


विष    का    तन   भंडार,   देख   जुगुप्सा   देह,

 भोलेपन    की   धार,   छुआ  न जाए     अंग।


छत    पर    करना  राज,   यही   एक   उद्देश्य,

बँधे     शीश    पर    ताज, तभी   नहाएँ   गंग।


चिकने     मुखड़े    पीन,  लगा  मुखौटे     खूब,

साठा     बने     नवीन,   चर्म    चमक   अभ्यंग।


लगी    हुई     है    होड़,   करें  धरा पर     पात,

करे    सियासत    मोड़,  देख- देख जन     दंग।


नीति   नहीं    कानून,   केवल    पंक -  उछाल,

सब    हैं    अफलातून,  बाहर  भीतर       नंग।


'शुभम् '  बढ़ा     उत्पात, राजनीति का    मूल,

छिनते    नारि     दुकूल,बने मनुज अब   संग।


शुभमस्तु !


23.05.2024● 12.45 प०मा०

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