250/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
इधर आग है
उधर आग है
बाहर भीतर
आग लगी,
चरम आग का
क्या होना है ?
सोच रहे हैं
मनुज सभी।
चित भी इनकी
पट भी उनकी
अंटा उनके बाप का,
नहीं जानते
ऊंट किधर ले
करवट मत के ताप का।
न्याय नीति
सब रखे ताक पर
हथकंडे के ही फंडे,
बाजी निकल
न पाए कर से
घूम रहे हैं मुस्टंडे।
भीतर खोट
मिले बस सत्ता
चाहे जैसे
हम भगवान,
दाँत अलग कुछ
दिखलाने के
खाने को बनते शैतान।
रक्षक है
बलवान समय ही
हो न सकेगा
अब अन्याय,
मानव को
मानव जो समझे
'शुभम्' उसी को
मिलता न्याय।
●शुभमस्तु !
30.05.2024●3.45प०मा०
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