मंगलवार, 7 मई 2024

चप्पल [ बाल गीतिका ]

 213/2024

            

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सरपट    फटफट    जातीं  चप्पल।

आतीं  -  जातीं  -   आतीं  चप्पल।।


उबड़ - खाबड़   या    समतल   हो,

पदत्राण    बन     पातीं     चप्पल।


कीचड़ , पर्वत      या   हो     ढालू,

बिलकुल  नहीं     डरातीं   चप्पल।


काँटा  चुभे   न    कीचड़     लिपटे,

दोनों    पैर       बचातीं      चप्पल।


न  हो   हाथ    में अस्त्र -  शस्त्र तो,

दुश्मन    पीट     गिरातीं    चप्पल।


होतीं   कभी     हाथ   में   शोभित,

दुष्टों    को      धमकातीं     चप्पल।


'शुभम्'  बहुत   ही   गुण   से भारी,

प्रतिपक्षी      धकियातीं     चप्पल।


शुभमस्तु !


06.05.2024●5.45प०मा०

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