213/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सरपट फटफट जातीं चप्पल।
आतीं - जातीं - आतीं चप्पल।।
उबड़ - खाबड़ या समतल हो,
पदत्राण बन पातीं चप्पल।
कीचड़ , पर्वत या हो ढालू,
बिलकुल नहीं डरातीं चप्पल।
काँटा चुभे न कीचड़ लिपटे,
दोनों पैर बचातीं चप्पल।
न हो हाथ में अस्त्र - शस्त्र तो,
दुश्मन पीट गिरातीं चप्पल।
होतीं कभी हाथ में शोभित,
दुष्टों को धमकातीं चप्पल।
'शुभम्' बहुत ही गुण से भारी,
प्रतिपक्षी धकियातीं चप्पल।
शुभमस्तु !
06.05.2024●5.45प०मा०
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