226/2024
[परिमल,पुष्प,कस्तूरी,किसलय,कोकिला]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
सभी दंपती के लिए,परिमल शुभ संतान।
जननी को सम्मान दे, होता पिता महान।।
पति-पत्नी के मध्य में, परिमल सच्चा प्रेम।
जीवन हो आनंदमय, चमके जीवन-हेम।।
खिले पुष्प- सा पुत्र जो, हर्षित हों माँ-बाप।
सत्पथ पर संतति चले, बढ़ता सदा प्रताप।।
मानव के सत्कर्म ही, देते पुष्प - सुगंध।
संतति को शुभ ज्ञान दें , बनें नहीं दृग-अंध।।
कस्तूरी सद गंध - सा,मिले शुभद यश मान।
उच्च शिखर आरूढ़ हो, मानव बने महान।।
कस्तूरी - सद्गन्ध को, हिरन न जाने लेश।
त्यों सज्जन अवगत नहीं, रख साधारण वेश।।
किसलय फूटे वृक्ष में,लाल हरी हर डाल।
आएं हैं ऋतुराज फिर, तरुवर मालामाल।।
किसलय नन्हे लग रहे,ज्यों नव शिशु के हाथ।
झूल पालने में रहा,निज जननी के साथ।।
ऋतु वसंत मनभावनी,करे कोकिला शोर।
अमराई में टेरती, हुआ सुहाना भोर।।
श्याम कोकिला की सुनी, अमराई में टेर।
विरहिन के मन टीस ने, किया प्रबल अंधेर।।
एक में सब
लगी कूकने कोकिला, खिले पुष्प रतनार।
कस्तूरी -परिमल जगी,किसलय की भरमार।।
शुभमस्तु !
15.05.2024● 8.00आ०मा०
गुरुवार, 16 मई 2024
कस्तूरी - परिमल जगी [ दोहा ]
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