219/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
ब्रह्मा विष्णु
महेश हो गया
धरती का भगवान आदमी।
अपना नाम
लिखाता फिरता
मंदिर सड़कों और गली में।
चला अकेला
साथ न कोई
जंगल का बस सिंह बली मैं।
अंहकार का
दास बना तू
नहीं कभी जो रहा लाजमी।
अपने ही गुण के
घर - घर में
डंके से बाजे बजवाए।
कोई टिके
समक्ष न तेरे
सौ-सौ गुण अपने गिनवाए।।
बचा न पानी
दो नयनों में
सूख गई सब बची जो नमी।
धन बल से
सब चैनल क्रय कर
अखबारों में छपता अपना।
बना स्वयंभू
ईश्वर रे नर
देख रहा कुछ ऊँचा सपना।।
सबमें कमियाँ
खोज हजारों
अपने में थी नहीं दो कमी।
शुभमस्तु !
09.05.2024●2.15प०मा०
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