198/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
कौन जानता है
अपना प्रारब्ध!
किंतु हमारा वर्तमान
हमारा भविष्य
सब देन है प्रारब्ध की।
अहंकार में मानव
भूल जाता है
कर्म का बोया
गया बीज,
कल वही
बनता है
गुलाब के फूल
या कीकर के शूल।
देखता क्या है?
सब तेरे सामने ही
आना है,
प्रारब्ध का ध्यान कर
अब क्या पछताना है?
जैसा बीज बोया था,
वैसा ही फल खायेगा,
अरे बच्चू!
बच कर कहाँ जाएगा?
नरक और स्वर्ग
सब यहीं मिल जाएगा।
दूध का दूध
पानी का पानी,
सब सामने ही आना है,
पैसा ही सब कुछ नहीं
'शुभम् ' कर्म -फल
सुहाना है।
शुभमस्तु !
02.05.2024●10.00 प०मा०
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