शनिवार, 4 मई 2024

रथ के घोड़े थके हुए हैं [ नवगीत ]

 200/2024

        

© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


घंटे शंख

बंद हैं सारे

रथ के घोड़े थके हुए हैं।


सन्नाटा पसरा 

घर भर में

कोई कुछ भी नहीं बोलता।

साँय - साँय 

चलती हैं लूएँ

गुपचुप धीमा जहर घोलता।।


पड़े गाल पर

गरम थपेड़े

आम पिलपिले पके हुए हैं।


एक स्वयंभू

ईश्वर बनकर

निर्मित की है अपनी सत्ता।

मेरी  इच्छा

बिना न हिलना

किसी पेड़ का कोई पत्ता।।


अपनों का ही

रक्त पिया है

हाथ अभी तक रँगे हुए हैं।


ये न समझना

पता नहीं कुछ

हवा कौन सी बाहर बहती।

सिर के ऊपर

बहता पानी

सरिता नई कहानी कहती।।


ताश महल 

के पत्ते सारे

अवगुंठन में ढँके हुए हैं।


शुभमस्तु !


03.05.2024●3.15प०मा०

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