गुरुवार, 27 मार्च 2025

जीव कुशल क्षेत्रज्ञ है [ दोहा ]

 176/2025

           

[खेत,माटी,रबी,फसल,खलिहान]


©शब्दकार

डर.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

         

                 सब में एक

जीव  कुशल क्षेत्रज्ञ  है,देह  मनुज की  खेत।

फल  कर्मों  के  चू रहे, पाप - पुण्य के  हेत।।

लिए    कलेवा  खेत में, करती नारी   गौन।

हर्षित सभी किसान हैं,विटप छाँव ही भौन।।


माटी जननी   जीव  की,  माटी में अवसान।

सोना- चाँदी भी वहीं, वही जगत की  खान।।

मत   माटी  को  निंदिए, माटी सर्जक  तत्त्व।

उड़े   पड़े  जब आँख  में,रुदन करे अस्तिव।।


चना  मटर  गोधूम से, रबी फसल  आबाद।

चूँ -चूँ -चूँ  चिड़ियाँ करें,विचर भरें मधु नाद।।

फसल रबी लहलह करे,कृषक करें आमोद।

भावी   के  सपने  दिखें, बैठ धरा की   गोद।।


कृषक फसल परिवार का,अति घनिष्ठ अनुबंध।

भारी   होती   पीठ  भी,सुदृढ़ वक्ष सह   कंध।।

ओले   शीत   तुषार से, नित भयभीत किसान।

फसल  सुरक्षित  खेत में,घर में अन्न   निधान।।


पकी   खेत  में बालियाँ, हर्षित सभी  किसान।

गठरी भरते  खेत से,   करें  कृषक खलिहान।।

लगा   ढेर  खलिहान  में,चिंतित है  परिवार।

गई   पोटली   गेह  में,  प्रमुदित   तुष्ट विहार।।

                एक में  सब

रबी फसल खलिहान से,आती है जब गेह।

मुदित   खेत   माटी सभी,नाच रहा है   नेह।।


शुभमस्तु !


26.03.2025● 8.15आ०मा०

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