171/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अग-जग में मधु ऋतु मनभाई।
बौरा गई हरित अमराई।।
गेंदा महक रहा क्यारी में,
पाटल ने बगिया महकाई।
अलि दल झूम रहे डाली पर,
तितली की छवि परित: छाई।
कुहू- कुहू कर कोकिल कूके,
प्रोषितपतिका चैन न पाई।
मोर बाग में नर्तित मद में,
पिड़कुलिया प्रभु महिमा गाई।
गाँव -गाँव बजते डफ ढोलक,
लिए मँजीरा टोली आई।
होली गीत गा रहे मिल- जुल,
गेहूँ चना मटर शुभताई।
शुभमस्तु !
24.03.2025●6.00आ०मा०
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