गुरुवार, 27 मार्च 2025

मधुऋतु मनभाई [ गीतिका ]


171/2025

                

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अग-जग में मधु ऋतु मनभाई।

बौरा     गई   हरित   अमराई।।


गेंदा    महक    रहा  क्यारी  में,

पाटल   ने    बगिया  महकाई।


अलि दल  झूम  रहे  डाली पर,

तितली की छवि  परित: छाई।


कुहू-  कुहू  कर  कोकिल कूके,

प्रोषितपतिका  चैन     न  पाई।


मोर   बाग  में   नर्तित  मद   में,

पिड़कुलिया प्रभु महिमा   गाई।


गाँव -गाँव  बजते  डफ   ढोलक,

लिए     मँजीरा     टोली  आई।


होली गीत गा    रहे   मिल- जुल,

गेहूँ       चना      मटर  शुभताई।


शुभमस्तु !


24.03.2025●6.00आ०मा०

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