\ 151/2025
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
आ रहे हैं संदेश रँगे
मोबाइल से खेलने।
हुड़दंग है होली का
आप भी भागीदार हो
मिटा रहा हूँ बारंबार
आदत से लाचार हो
चुक गए क्या शब्द रंग
आ गए हो ठेलने।
रेडीमेड माल का
जमाना ये नकली है
रिफाइंड घासलेट सब
एक नहीं असली है
भीतर भरे कचरे को
बाहर उंडेलने।
तुम्हारा काला अक्षर भी
भैंस के बराबर क्या?
भूल गए क ख ग
थोड़ी तो करो दया
मुश्किल बढ़ाई हमारी
हमें पड़ा झेलने।
शुभमस्तु !
13.03.2025●2.45प०मा०
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