175/2025
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
संचय करना पुण्य का, सुधरेगा परलोक।
जीवन में सुख शांति हो,चले राह बे रोक।।
संचय करना पाप का, नर जीवन का शाप।
बूँद -बूँद कर घट भरे,सदा मिलें बहु ताप।।
धन संचय करते सभी,निर्धन और अमीर।
साथ न जाए बाल भी,लिखा यही तकदीर।।
उतना ही संचय करें, जितना हो अनिवार्य।
आगत को स्वागत मिले,सुगम चलें सब कार्य।।
संचय में जीवन गया, भोग न पाया बूँद।
बन विवेक का अंध तू, रहा चक्षु दो मूँद।।
सीमा संचय की नहीं, भरे हुए भंडार।
उड़ा हंस परलोक को, करता नहीं विचार।।
संचय कर भोगा नहीं, यदि धन को हे मीत।
व्यर्थ भरे भंडार तू, भावी वृथा अतीत।।
संचय कर प्रभु भक्ति का, सत्कर्मों का मित्र।
आसपास सर्वत्र ही, महक उठे यश इत्र।।
जो आया संसार में, संचय में संलग्न।
किसके हित में जी रहा,सन्तति के हित मग्न।।
सुखी पखेरू हैं सभी, कण संचय से दूर।
मानव ही जूझा रहा,धन के हित मजबूर।।
कल का दाना आज क्यों,संचय कर हों व्यग्र।
पंख खोल सोएँ सभी,खग मानुस से अग्र।।
शुभमस्तु !
25.03.2025● 9.00 प०मा०
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