सोमवार, 17 मार्च 2025

यही है असली होली [दुमदार दोहा]

 152/2025

        


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जहर   भरा  हर  तेल हो,घृत हो चर्बीदार।

खोया में मैदा  भरी, होली   का त्योहार।।

यही है असली होली।


रंग  रसायन  से   बने, नकली लाल गुलाल।

इनको असली मान लो,करो न एक सवाल।।

यही है असली होली।


'विष विद्यालय'   खोलिए, नकली डिग्री बेच।

कुलाधिपति बनकर पुजें,कसें शिष्य के पेच।।

यही है असली होली।


साँठगाँठ   ऊपर   करें,  जा  नेता  के पास।

उठे  पूँछ  जब आपकी,  होना नहीं उदास।।

यही है असली होली।


धनिए   में  देना  मिला, निर्भय होकर  लीद।

कहलाओगे   सेठजी,   गहरी   आए नींद।।

यही है असली होली।


दूध  दुहो  जब भैंस का, करें न हृदय मलीन।

दुहनी  में  पानी  भरें,  पहले ही नित क्लीन।।

यही है असली होली।


हल्दी हो  या  मिर्च  हो,  सब में रँग का मेल।

करें सेठजी  नित्य  ही, आँख बचाकर   खेल।।

यही है असली होली।


भ्रष्ट तंत्र   के  खेल  में,  खेल  रहे जो   लोग।

दूध  धुले  कहते  उन्हें,  उन्हें न व्यापे  रोग।।

यही है असली होली।


चमचागीरी   जो  करे, भर- भर खाए  खीर।

कहाँ मिली हर आम को,कुछ ऐसी तकदीर।।

यही है असली होली।


रुपए पाँच सौ की किलो,चीनी का मिष्ठान्न।

हाथ तोंद   पर फेरते, लालाजी   सह  मान।।

यही है  असली होली।


बात  करें  आदर्श  की, परदे में कुछ और।

चरस और  गाँजा  पिएं,नहीं कराते क्षौर।।

यही है असली होली।


शुभमस्तु !


13.03.2025● 4.15प०मा०

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