158/2025
आज पापा यार है!
ये ब्यार बदबूदार है।
पछुआ हवा का वेग है
चलता यहाँ पर तेग है
संतान को क्या हो गया
इंसान जैसे सो गया
घर-घर चली तलवार है
आज पापा यार है।
आती बहू जब ब्याह वर
वह सीख देती स्याह कर
चूल्हा अलग कर सास से
होता विलग घर आस से
माता -पिता की हार है
आज पापा यार है।
पढ़ना नहीं कुछ काम का
बस मंत्र है आराम का
करना नहीं कुछ काम भी
होती सुबह से शाम भी
नव सभ्यता -विस्तार है
आज पापा यार है।
माने न ससुरा - सास को
खाते खड़े ज्यों घास को
ये जीभ ही औजार है
तलवार का अवतार है
घर का ही बंटाढार है
आज पापा यार है।
शुभमस्तु !
15.03.2025●9.15 प०मा०
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