सोमवार, 17 मार्च 2025

आज पापा यार है! [नवगीत ]

 158/2025

           


आज   पापा  यार  है!

ये ब्यार  बदबूदार  है।


पछुआ  हवा  का  वेग है

चलता  यहाँ  पर तेग  है

संतान को क्या हो गया

इंसान जैसे सो गया

घर-घर चली तलवार है 

आज पापा यार है।


आती बहू जब ब्याह वर

वह सीख देती स्याह कर

चूल्हा अलग कर सास से

होता विलग घर आस से

माता -पिता  की हार है

आज पापा  यार है।


पढ़ना  नहीं कुछ  काम का

बस   मंत्र   है   आराम  का

करना नहीं  कुछ  काम भी

होती  सुबह  से   शाम   भी

नव सभ्यता -विस्तार है

आज   पापा   यार   है।


माने न  ससुरा - सास को

खाते खड़े ज्यों घास  को

ये जीभ   ही  औजार है

तलवार का अवतार है

घर   का  ही बंटाढार है

आज   पापा   यार   है।


शुभमस्तु !


15.03.2025●9.15 प०मा०

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