143/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
बंद किले के नौ दरवाजे
दसवाँ बंद सपाट।
सब पर बैठे देव- देवियाँ
अलग सभी के काम
सभी सहायक बने परस्पर
बने हुए नव धाम
आए एक एक जाए तब
करनी होती बाट।
आनन वाणी नाक पवन का
युगल नयन रवि चंद
गगन श्रवण में जनन अंग में
ब्रह्मावास अमंद
यम का द्वार छिपा है नीचे
करता काज विराट।
दशम द्वार की चिंता किसको
आवृत सुदृढ़ कपाल
जहाँ वास हरि शीश विराजे
जिसका गात धमाल
करता रहता जीव रात-दिन
चादर ओढ़े ठाट।
शुभमस्तु !
05.03.2025●2.00प०मा०
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