166/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
खोखले आदर्श की
बातें हमें भाती नहीं हैं।
सोच सबकी भिन्न होती
आज तुमको जानना है
जो उगा हो घास के सँग
घास जैसा मानना है
हम बबूलों से कभी
रातें कभी महकी नहीं है।
तुम उगे क्यारी गुलाबी
पंक से पैदा हुआ मैं
जन्म से ले रजत चमचे
तुम हुए,माँ की दुआ मैं
पीठ है भारी तुम्हारी
मेरी बड़ी छाती नहीं है।
श्याम को तुम श्वेत करते
निगल जाओ सूँड़ हाथी
मरती नहीं गृह मक्क्खियाँ भी
एक अपना है न साथी
रवि मंडलों के पार हो तुम
इह तेल या बाती नहीं है।
शुभमस्तु !
19.03.2025●8.30प०मा०
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