रविवार, 23 मार्च 2025

सुनीता विलियम्स [ अतुकांतिका ]

 167/2025

              

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


नौ महीने चौदह दिन बाद

अंतरिक्ष से लौटे

वैज्ञानिक सुनीता विलियम्स

और बुच विल्मोर,

फ्लोरिडा का समुद्र तट

तीन बजकर 

सत्ताईस मिनट की

सुहानी भोर,

स्पेशएक्स्क्रू-9 कैप्स्यूल

उन्नीस मार्च 

दो हजार पच्चीस।


अंतरिक्ष यात्रियों के

साहस को

नमन करता है संसार,

एक नाउम्मीद

उम्मीद में बदली,

हट गई 

आशंकाओं की बदली,

उनके दुर्लभ अनुभव

जगत ये जाने,

यह भी एक अनुभव है

इसे आगे बढ़ने की

प्रेरणा माने।


वही मुस्कराहट है

वही सुनीता हैं 

बुच हैं,

अनहोनी के बीच

प्रत्यक्ष दो सच हैं।


जय हो विज्ञान की

जय हो  साहस की

मानव के ज्ञान की,

साढ़े उन्नीस करोड़ 

किलोमीटर की महान

दुस्साहसिक यात्रा,

चार हजार

पाँच सौ छिहत्तर बार

पृथ्वी परिक्रमा,

कल्पनातीत अनुभव,

झूलासन गाँव 

गुजरात की   

भारतीय मूल की 

बेटी को नमन।


शुभमस्तु !


20.03.2025●2.30प०मा०

                    ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...